भारतीय शारीरिक शिक्षा में खेल कूद का विस्तार पूर्वक वर्णन


 भारतीय शारीरिक शिक्षा में खेल कूद का विस्तार पूर्वक वर्णन



भारतीय संस्कृति सांस्कृतिक सभ्यता जब उत्पन्न हुई तभी से व्यायाम खेलकूद मानव जीवन का विशेष अभिन्न अंग बने हुए हैं क्योंकि व्यक्ति मानते थे कि उचित व्यायाम सारे के बयान से स्वास्थ्य मनुष्य के विचारों व स्वस्थ रहते हैं


 जिसके के बिना जीवन अधूरा होता है खेलकूद व्यायाम शिव आदिकालीन पुराने काल रामायण महाभारत काल मराठा योग सभी युगों से चला आ रहा है 


विभिन्न रूपों में जीवन संचालन क्रिया प्रणाली के अनुसार स्वस्थ जीवन हेतु समय अनुसार प्रयोग किए गए अनुसंधान और से यह स्पष्ट हुआ कि सिंधु घाटी की सभ्यता पर मोहनजोदड़ो की सभ्यता के समय व्यक्ति विशेष व्यायाम खेलकूद व कला संस्कृति में अधिक प्रति निष्ठावान थे आधुनिक काल में भी खेलकूद व कला संस्कृति में कार्य हो रहे हैं


 संतो आदिकाल से ही इनका प्रयोग किया जाता है आदिकाल में तीरंदाजी मल युद्ध घुड़दौड़ कुश्ती तीरंदाजी कूदना आदि ऐसे खेलों में रुझान किया गया है आधुनिक जीवन में भी इनका प्रयोग किया जाता है भारत में आदि काल से ही इनका प्रयोग अपने जीवन को स्वस्थ व रोग मुक्त बनाने में किया जाता था


 स्वतंत्र भारत में जवाहरलाल नेहरू के प्रोत्साहन द्वारा शारीरिक शिक्षा में खेल कूद पयाम पर विशेष ध्यान दिया गया और भारत के प्रत्येक विद्यालय महाविद्यालय तक इसको पहुंचाया गया एक अभिन्न हिस्सा बनाया गया भारतीय खेलकूद में विदेशी संगठनों के संचालन हेतु महाराष्ट्र राज्य में स्थित अमरावती हनुमान व्यायाम परिसर मंडल व्यामशाला वाराणसी उत्तर प्रदेश गुजरात राज्य में बड़ौदा में स्थित रानी लक्ष्मीबाई गया मंडल झांसी विशेष रूप से प्रसिद्ध है 


समय भारत में कबड्डी कुश्ती घुड़सवारी श्रद्धा तीरंदाजी आदि खेल कार्यक्रम विशेषकर किए जाते थे पारंपरिक सब बताओ में से परंतु आधुनिक काल में इसका प्रयोग विकास मात्रक प्रणाली के रूप में भी किया जाता है बच्चों को स्कूल में ही उनका श्रवण जी विकास विकास किया जा सके जिससे बच्चे शारीरिक व मानसिक दोनों रूप से स्वस्थ रह सकें स्वतंत्र भारत में ही एशियन खेलों का की शुरुआत की गई सन 1951 के बाद भारत में अनेकों खेलों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया मैं भारत का नाम भी ऊंचा किया

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